*कर्मंयेवाधिकारास्ते माँ फलेषु कदाचना*
*माँ कर्मफलाहेतुर्बुर माँ ते संगोस्त्वकर्मानी (२.४७)*
*योगास्थाह कुरु क्रमानी संगम त्यक्त्वा धनञ्जय*
*सिद्ध्यासिद्ध्यो समोभूत्वा समत्वं योगामुच्याते (२.४८)*
|| नीष्काम कर्म योग ||
चाहत की डोर से कर्म को बांधना,
सुख-दुःख, लाभ-हानी के माया पाश मैं
बार बार फस जाना है,
बीना कोई चाहत लीये कर्म करना,
और भगवान् को समर्पीत करना,
यही योग युक्त कर्म है ||
हार हो या जीत, सुख मीले या दुःख,
मन से उसे स्वीकारो , इतना वीश्वास रखो,
भगवान् बडे दयालु है, साबका भला कराते है,
बस कोई आगे है , कोई पीछे रहता है ||
|| शरीर जगत का है , आत्मा इश्वर की है , इश्वर तुम्हारी एकमात्र सुरक्शा है || जय गुरूदेव
Monday, 8 October 2007
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