भक्त की आंखोंसे'
समझानेसे , समझ ना पाया,
माया का पर्दा हटा ना सका,
भगवान् ने फीर भाषा बदली,
भक्त से दोस्ती की ऊँगली पकड़ाइँ,
ऊंचाई से ना देख पाया तो,
खुद उस से नज़ारे मीलाई,
और कहने लगे भगवान्,
मेरा कुछ ना सुनो अब,
सीर्फ सोचो, अर्जुना एक बार,
नही लडोगे तो ना पाओगे सं मान,
ना ही मीलेगा स्वगि का द्वार,
लडोगे तो दीलोंपेर भी राज करोगे,
और स्वर्ग के द्वार भी खुलेंगे,
तुम जों भी करोगे, एक इतीहास बन कर रहेगा,
डरपोक होकर नींदा सह्नेसे अच्छा है,
धर्म नीभाकर एक मीसाल बन जाना ..||
Sunday 30 September 2007
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