भागवत गीता (2।22-2.२५)
|| धारा को राधा बनाओ ||
गंगा नीत नूतन है,
फीर भी बहोत पुरानी है,
धाराये बहती रहती है,
पानी नीत नूतन बहता है,
गंगा वही थी जों अब है,||
तुम भी नीत नूतन हो,
फीर भी बहोत पुराने हो,
भावानाये बहती रहती है,
आती जाती रहती है,
तुम वही थे जों अब हो,||
जरा एक पल रुको ,
शांती से देखो,
धारा को राधा बनाओ (जय गुरुदेव)
इसी पल मैं जान लो,
कल भी तुम वही रहोगे,
जों कल थे, आजभी हो,
अन छुए , शुद्ध, पवीतृ
ना आग तुमको जला सकती है,
ना पानी तुम्हे डूबा सकता है,
ना वायु तुम्हे बहा सकता है,
ना मिट्टी तुम्हे मीटा सकती है,
जनम और मृत्यु का भय कैसा,
वोह तो आते जाते है,
नए शरीर लेके.
कर्म करने के लीये..||
असली रूप को जानो,
और नीराशा से परे हो जाओ..
धारा को राधा बनाओ।
धारा को राधा बनाओ ||
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