Wednesday 26 September 2007

भागवत गीता २।२९ - २.३० " अहो नीरंजनः "

" अहो नीरंजनः "

क्या तुमने सुना,कौन तुम्हे 'सुनवा' रहा है,
क्या तुमने देखा, कौन तुम्हे 'दीखा' रहा है,
क्या तुमने महसूस कीया, कौन तुमको 'महसूस करवा' रहा है??

जवाब दो,
अपने आप से,

कोई सोचता है, यह तो बड़ा आश्चयि है,
कोई कहता है, बड़ा वीस्मयकारक है,
कोई कहता है, यह तो समझ के बाहर है |

कोई कुछ भी कहे, यह 'है',
इसको कोई इनकार नही कर पायेगा |


तुम तो नादाँ नही हो भरता,
फीर ऎसी बाते क्यो करते हो?

जागो, और देखो,
सारे जगत मैं एक ही चैतन्य है,
उस अद्भूत चैतन्य को पहचान लो |

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