आपने लीये कर्म करना,
और भगवान के लीये कर्म करना,
बस, इन मैं भेद जीसने जाना,
उसका जीवन धन्य हो गया,
अपने दील के सुख या दुख के लीये,
इन्द्रीयोंसे जुड़ा कोई भी कर्म होता है,
वोह काल गती मैं फीर से बंध जाता है,
भगवान की शरण मैं जों कर्म कर्ता है,
वोह सब कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाता है,
अर्जुना, तुम तो 'भक्त' हो,
युद्ध युद्ध के लीये करो,
मैं कह रहा हु, इस्लीये करो,
तो तुम इसके परीणामौसे मुक्त हो जाओगे
यही सांख्य योग है, भक्ती योग है,
भगवान् की शरण मैं कर्म करना,
नीरंतर अनंद को पा लेना है ||
|| जय गुरुदेव ||
Sunday, 30 September 2007
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1 comment:
अच्छी प्रस्तुति है।
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